ये वीरों की जननी, ये भारत भूमि मेरी
अपने लहू की भेंट चढ़ाकर इसका मान रखेंगे
आंच न आए इस धरती को
तन मन धन बलिदान करेंगे
इस बगिया की हर बात निराली
बच्चा बच्चा इसका माली
रंग रंग के फूल हैं इसके
खुश्बू से जिसकी जग है महके
सींच लहू से इसका सम्मान रखेंगे
नदियाँ, पहाड़ और झरने
हैं इस धरती के गहने
हवाओं में बहे संगीत जिसके
उस धारा के क्या हैं कहने
न्योछावर अपनी जान करेंगे
उत्तर में खड़ा विशाल हिमाला
गंगा, यमुना को गोदी में पाला
रक्षक हैं, प्रहरी हैं हम सबका
ताज है भारत के मस्तक का
सदा बनाये इसकी शान रखेंगे
इसी मिटटी में से उपजी
प्रेम, अहिंसा और शान्ति की फसलें
हुए पैदा संस्कार इसी धरा पर
खोली आँखें सभ्यता ने सबसे पहले
सीख संस्कृति की लेकर
सदा इसकी पहचान रखेंगे
कल कल करती नदियाँ जब हैं बहती
राम कथा की धुन हैं कहती
खेत खलियानों में मस्त पवन छेड़ती तानें
कहीं कीर्तन, कहीं शब्द और कहीं अजानें
शत शत नमन इस माटी को
सदा इसका गुणगान करेंगे
आंच न आए इस धरती को
तन मन धन बलिदान करेंगे
Tuesday 15 July, 2008
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
1 comment:
Nice Post
Post a Comment