Monday 14 July, 2008

कभी कभी मेरे दिल में ये ख्याल आता है

कभी कभी मेरे दिल में ये ख्याल आता है
कि क्यों मर जातें हैं सवाल
उत्तरों कि प्रतीक्षा में
क्यों नही मिलते हैं कुछ सवालों के जवाब ?
क्यों नही उगते उन सवालों के पंख
और नही हो पाता है उन सवालों का विस्तार

क्या सोचता है वो मज़दूर ?
जो धकेला जाता है
पत्नी और बच्चों समेत
जब बैठ कर सुस्ताने लगता है
उस इमारत की छाँव में
जिसके निर्माण में लगा था पसीना उसका
क्या सोचता है वो मज़दूर

एक गरीब बाप सोचता है क्या
जब कोई बताता है
कि नेताजी के जन्मदिन पर
काटा गया सत्तर किलो का केक ?
उसकी सूखी आंखों कि प्रतिक्रिया क्या होती है
जब याद आता है उसको
है आज उसके लाडले का भी जन्मदिन
जो अभी अभी सोया है भूखा
रोते रोते थक कर गोद में अपनी माँ के
जिसके टपक रहे हैं आंसू
खाली पेट में अपनी औलाद के .....
क्या सोचता होगा वो गरीब बाप ?

क्या सोचते होंगे वो शरीर
जो सांस लेते थे कुछ देर पहले तक
वो जिनके घर नही थे
सो रहे थे पसीने से लथपथ
फुटपाथ पर
नही हुई जिनकी सुबह
जो कुचल गये अमीरों कि गाड़ी के नीचे
जिन्ह दिखती नही थी सड़क
बहक रहे थे जो, पैसे की चकाचौंध में
क्या सोचते होंगे वो शरीर
जो देखते थे सपने बहन की शादी के
इसबार तो जरूर होगी मरम्मत
गाँव में अपने पुराने घर की
एक अमीरों की शानदार गाड़ी ने
कुचल दिये वो सपने
वो बिखरे शरीर क्या सोचते होंगे ?

उस विधवा की आँखें क्या सोचती होंगी
देख कर अपने पति की तस्वीर को
जब उसे पता चलता है कि जिस नेता की रक्षा में
उसके सैनिक पति ने गँवाए अपने प्राण
भेजा गया है जेल में उस नेता को
लगे हैं उस पर घोटालों के इल्जाम
क्या सोचती हैं उस विधवा की आँखें जिसे
मिले केवल प्रशस्ति पत्र और
दब कर रह गए फाइलों में मुआवजे के आश्वासन ?

आईआईएम के ग्रेजुएट को
एक लाख रुपये प्रति महीने का ऑफर !
सुनकर ये ख़बर
क्या सोचता होगा दफ्तर का वो बाबु
जो कल रिटायर होने को है?
और दो जवान बेटी और बेरोजगार बेटे की चिंता में
नींद से लड़ रहा है
शादी, बिल, कर्जे और खर्चे
इन्हीं शब्दों की पहेलियों में उलझा
क्या सोचता है ये बाबु
होने वाला है कल रिटायर जो ?

क्या सोचता होगा पंडितजी का बेटा
फर्स्ट क्लास की डिग्री हाथ में लेकर ?
सुनता है जब वों,
पड़ोसी के घर में हवन है
उनका एक और बेटा
आरक्षण की सीडी पर चढ़ कर
कलेक्टर जो हो गया है
पिताजी को अच्छी दक्षिणा की आशा है
छोटी बहनों की फीस के लिए पैसे का प्रबंध
हो जाएगा
क्या सोचता होगा
पंडितजी का बेटा......

कभी कभी मेरे दिल में ये ख्याल आता है
कि क्यों मर जातें हैं सवाल
उत्तरों कि प्रतीक्षा में ?
क्यों नही मिलते हैं कुछ सवालों के जवाब ?
क्यों नही उगते उन सवालों के पंख ?
और नही हो पाता है उन सवालों का विस्तार

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