Friday, 11 July 2008

एक आम आदमी की मौत

वहां भीड़ थी , तमाशा था
एक पागल सा आदमी चिल्लाता था
ये जो यहाँ लेटा पड़ा है
जिंदा नहीं मरा है
हाँ, ये फालतू था, आम था
लेकिन इंसान था
ये तुम जैसा था
पर इसके पास न घर था ना पैसा था
लोग देखते थे आँखें फाड़
पूछते थे एक-दूसरे से
अरे! कहाँ है लाश?
पागल फिर चिल्लाया
ये मरा पड़ा है
पर, तुम्हें नज़र नहीं आया ?
अरे, ओ अंधों
इधर देखो
ये यहाँ है लेटा
ना किसी का भाई है ये
ना किसी का बेटा
उसकी है मुझे तलाश
जो लिपटे इससे और कहे
हाँ! ये उसके अपने की है लाश
पूछते हो ये कैसे मरा?
मंहगाई तले दबा था
सूखे ने इसको मारा
बाढ में भी यही बहा था
रोंदा गया था यही
ब्लू लाइन के नीचे
छोड़ गया पत्नी और बच्चे पीछे
ये मरता है जब कोई रइशजादा
अपनी तेज़ रफ़्तार गाड़ी में
सड़क छोड़ फुटपाथ पर
जा चढ़ता है
आग लगी थी जब शहर में
दंगाइयों ने सबसे पहले
था इसी अभागे को पहचाना
नंदीग्राम में भी प्रशासन की गोली
ने इसको ही बनाया निशाना
सरकारी तंत्र ने भी इसको खूब सताया
कभी थमाए बिल कभी उगाहे टैक्स
कभी लगवाये अदालतों के चक्कर
कभी भ्रष्टाचार ने दबाया
इसी पर गिरा सीलिंग का कहर
इसी के खाने में मिला मिलावट का ज़हर
रिलायंस का फ्रेश इसको बासी कर गया
लोन नहीं चुका पाया इसीलिए मर गया
इंडिया शाइनिंग करनेवालों
तुमने 'रिफोर्म, रिफोर्म' खूब चिल्लाया
लेकिन विदर्भ का यह गरीब किसान
तुम्हे नज़र नहीं आया
इसके कर्जे की फसलें बढ़ती थीं
बिन पानी बिन खाद के
चूल्हे बुझे, बर्तन बिके
अब दाम लगाते हो क्या राख के ?
रोटी के बदले
गोली विटामिन की थमाने वालों
ज़रा इसकी लाश पर भी
नज़र डालो !
ये क्या जाने इकोनोमी की ग्रोथ
भूख से हुई है इसकी मौत
उधर सेंसेक्स उछला
इधर इसका दम निकला
गांधी का लाडला अपने को यह बताता था
कतार में ख़ुद को सबसे पीछे खड़ा पाता था
पैकेज फाइलों में उलझे
राहतें घोषित हुई पर लटकी बीच में
इंतज़ार में इसकी कमर झुकी
और फिर झुक कर टूटी
ओ, टीमइम इंडिया की जीत पर खुशी मनाने वालों
दो आंसू इस आम आदमी की मौत पर बहा लो !
अब लोगों का सब्र टूटा
और गुस्सा उस पागल पर फूटा
अबे, बड़ी-बड़ी कर ली तूने बात
पागल के बच्चे पर कहाँ है लाश ?
बोला पागल, मिले प्रमाण जब
तभी तुम्हारी आत्मा जगती है
एक आम आदमी को क्या लाश बनने
में देर लगती है?
नज़र तभी उसके हाथ में चाकू आया
एक बार हाथ उसका हवा में लहराया
और देखते देखते पेट में जो उसने भोंका
हर आदमी चीखा, और चोंका
सभी रह गए हक्के -बक्के
ये क्या हुआ !
सब रह गए भौंचक्के
पुलिस केस !
भीड़ में से कोई फुसफुसाया
लोगों ने खिसकने में टाइम न लगाया
अब वहां सचमुच एक लाश थी
तमाशा खत्म !
भीड़ खो गई थी
एक आम आदमी की मौत जो हो गई थी
हाँ ! एक आम आदमी की मौत जो हो गई थी

2 comments:

Amit K Sagar said...

प्रभावशाली. बहुत खूब. लिखते रहिये. शुभकामनायें.
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उल्टा तीर

Anil Kumar said...

आम आदमी की व्यथा को बहुत खूब उतारा है आपने शब्दों में - बिलकुल सरल लेकिन प्रभावशाली! लिखते रहिये, मैं और पढ़ने की आस लगाये बैठा हूं।