Thursday 10 July, 2008

अन्तिम मिलन

अन्तिम मिलन

आओ कुछ दूर और हम तुम साथ चलें
सजोये थे जो स्वप्न महल इक दूजे की आंखों में
विरह अश्रुओं से आज कर उन्हें साफ़ चलें

होकर प्रतिधवनित लोट आए शायद
खामोश अधरों पर
भटकते होंगे यहीं कहीं नाम हमारे
सुनकर उन्हें फिर इक बार चलें

नहीं पहुँची हैं लहरें उस तक
है शेष रेत का घरोंदा अब तक
आओ इन निर्मम हाथों से
कर उसपर अन्तिम प्रहार चलें

तुम्हारे लजा कर सिमटने से
अरुणाचल था फेलता यह रवि
खो जायेगा दूर रूठ कर
अंतहीन कालिमा में आज कहीं
आओ इसे अन्तिम बार निहार चलें

कुछ अनकही सी बातें
कंपकपाते होठों पर
सहेज कर रखीं थी अब तक
आज भी दे रहीं हैं वो दस्तक
ह्रदय की उन वेदनाओं की
सुन कर चीत्कार चलें

कुरेद समय की चट्टानों को
खोज निकालें वो क्षण
ले जा सकें जिन्हें संग अपने
और ओढ़ कर रखें शेष जीवन
स्मृतियों के उन पुष्पों का
पहन कर आज हार चलें

आओ कुछ दूर और हम तुम साथ चलें
सजोये थे जो स्वप्न महल
इक दूजे की आंखों में
विरह अश्रुओं से कर उन्हें साफ़ चलें
आओ कुछ दूर और हम तुम साथ चलें

No comments: