Wednesday, 17 September 2008

baadh par ek kavita

बाढ़

तुमने नदी को बहते देखा
मैंने नदी को बहाते हुए देखा
लहरों की अठखेलियाँ लगती होंगी नृत्य तुम्हें
मैंने जल को तांडव करते देखा
पानी के विप्लव को देखा मैने
करते हुए अट्टहास मौत का
मैने देखा है लुटते अपनी दुनिया को
अपने बेबस आँचल से छूटते
अपने मुन्ने अपनी मुनिया को
सवाल है एक दुखियारी माँ का
क्या तुमने मेरे बच्चों को देखा?

तुमने देखा होगा मरते हुए सपनों को
मैने देखा है मरते हुए अपनों को
क्या इंसान, क्या पशु
ले जाता था जल प्रकोप जाने किस ओर
जल मग्न थे खेत-खलियान, घर, स्कूल सभी
नहीं दिखता था पानी का छोर
प्रकृति के आगे बेबस मानव को देखा
क्या तुमने मेरे बच्चों को देखा?

जहाँ सूखते थे कंठ प्यास से
और मट्के रहते थे अधिकतर उल्टे
उन गाँवों को भीं पानी में बहते देखा
फंसे हुए स्कूल की छतों पर
लोग मदद के लिए चिल्लाते थे
उम्मीद जहाँ थी रोटी की
कैमरे देख झल्लाते थे
भोजन के पॅकेट की आस में
दोड़ती थी नज़रें आसमान मे
नेताओं ने तो आसमान से ही बस तमाशा देखा
क्या तुमने मेरे बच्चों को देखा?

पानी को उतरते देखा
इंसानियत को मरते देखा
सोने के चंद गहनों के लिए
लाशों को भी लुटते देखा
राहत केंम्पों में भी
मददगारों को बनते हुए व्यापारी देखा
मुआवज़े की रकम् के लिए
अपने पति की लाश पर
दूसरी औरत को चूड़ियाँ तोड़ते देखा
क्या तुमने मेरे बच्चों को देखा?

उन्होने कहा कि वे जानते हैं कहाँ है मेरे बच्चे
फिर मैने विश्वास को टूटते हुए देखा
वहशियों को अपने शरीर को नोचते देखा
अपनी चीख को आसमान में फैलते देखा
लगा कि जैसे मैने भगवान को मरते हुए देखा
पर ये तो बताओ क्या तुमने ....
बच्चों की भगवान जाने
क्या तुमने मेरे कपड़ों को देखा?
क्या तुमने मेरे कपड़ों को देखा?

नोट: ये मात्र एक कल्पना है -ये एक अधूरा सत्य है , बाढ़ में मदद के लिए उठते हैं आज भी हज़ारों हाथ, उन नायको को में सलाम करता हूँ क्योकि दुनिया ऐसे ही लोगों के कारण सलामत है