Thursday 30 October, 2008

Tum kahan khade ho?
तुमने कहा कि सब चोर हैं, लुटेरे
हैंहर शाख़ पर बैठे हैं ले कर तीर कमान
निरीह जनता के शिकारी बहुतेरे हैं
भ्रष्ट हैं नेता, भ्रष्ट अधिकारी, भ्रष्ट है पूरा तंत्र
आत्मा तक रखी गिरवी इन्होंने
कहने को ही है देश ये स्वतंत्र
पर मेरे दोस्त ये तो
बताओ कि तुम कहाँ खड़े हों?

दबी-दबी आवाज़ में कहते
हो भय और आतंक के माहौल में जीते हो
घर से निकलते हो डरते हुए
घर में घुसते हो सहमे हुए
साहस का शस्त्र पड़ा-
पड़ा सड़ता तुम्हारे
भीतर प्रशासन की कायरता पर चिल्लाते हो
पर मेरे दोस्त ये तो बताओ
कि तुम कहाँ लड़े हो?

रोते रहे तुम किस्मत का रोना
पेड़ सफलता का
उगता पर भूले तुम मेहनत का पौंधा बोना
वो लड़े, वो बढ़े और जीते
तुम हर हार पर हारे हिम्मत
वो हर हार से
सीखे देख देख कर बाधाएं तुम
घबराते पग काँटों पर रखते
तुम भी तो फूलों की सेज पाते
पर मेरे दोस्त ये तो बताओ कि
तुम कहाँ बढ़े हो?

तुमने लिखे चाँद पर
गीत और उन्हे
गुनगुनाया पर चाँद को पाने के
लिए कब तुमने हाथ उठाया?
मिट्टी में हाथ अगर तुम सनाते
तो सपने तुम्हारे भी हकीकत बन
पर तुम सपनों को समझते रहे खिलोने
जब टूटे तो लगे तुम रोने
सूरज ने तुम्हे है फिर जगाया
एक नई सुबह है लाया
पर मेरे दोस्त ये तो बताओ
कि तुम कहाँ पड़े हो?

kash hum tum n kabhi mile hote
काश हम तुम न कभी मिले होते
दरमयां हमारे आज ये फ़ासले न
होते न भूले होते हम मुस्कुराना
नींद से अपना भी होता याराना
देख देख कर चाँद को हम यूं न रोते
आँखों में हमारे हरदम नमी
हिस्से का भी थोड़ा आसमां थोड़ी जमीं होती
दर्द के अंतहीन ये सिलसिले न
होते न ज़ख़्मों के निशां उभरते रह-रह के
न थकते आँसू हमारे बह-बहके
खामोशी से लब यूं सिले न होते
न तेरे तस्सवुर की गलियों में हम
भटकते न लड़खड़ाते कदम, न हम यूं
बहकते न याद करते कभी,
न तुझको कभी भूले होते

Monday 6 October, 2008

वो दो कुत्ते

वो दो कुत्ते

वो दो कुत्ते जिनके नाम न थे
कर्फ्यू से अनजान टहलते हैं उस सड़क पर
जो गवाह बनी थी कलमजहबी जुनून की
सड़क पर बिखरे हैं उस कल के निशान आज भी
अधजले टायर, टूटी हुई बोतलें और इंसानी लहू के धब्बे
जो बयां कर रहे हैं कहानी उस कल की
जो इस शहर की चीखती छाती परदर्ज हो गया सदा के लिए

वो दो कुत्ते जिनके नाम न थे
घूमते हैं बिंदास अधजली दुकानों के अंदर
जो कुछ मिलता है झपटते हैं, संघर्ष करते हैं आपस में
और फिर थक कर सो जाते हैं वहीं सड़क के किनारे
होती है हरकत उनके सुस्ताते शरीर में
जब पुलिस की गाड़ी का सायरन गूंजता है
वो भोंकते हैं, पीछा करते हैं
अपना श्वान धर्म निभाकर वापस लौट आते हैं
वहींउसी सड़क के किनारे
वो दो कुत्ते जिनके नाम न थे

कुछ हैरान भी थे
ना बच्चों का शोर ना गाड़ियों की पों पों
ना फेरीवालों की आवाज़ें
शहर जैसे गुम हो गया था
एक खामोश मातम का गवाह
सुनता है तो सिर्फ पुलिस की गाड़ियों के सायरन
और लाउडस्पीकर से निकलती हिदायतें
घर के अंदर रहो शहर में कर्फ्यू लगा है

वो दो कुत्ते जिनके नाम न थे
कल भी लड़ते थे , पर कल कुछ यूँ हुआ कि
दो लड़कों ने उनके नाम रख दिए
वो दो कुत्ते अचानक बन गये
अलग-अलग मज़हबों के प्रतिनिधि
वो अनजान थे
वो दो कुत्ते नहीं जानते थे की उन पर लग गया है दाव
वो लड़ते जाते थे
तमाशबीन बढ़ते जाते थे
ना वो जीते ना हारे भीड़ देख कर भाग खड़े हुए
पर दाव तो दाव था
पहले बहस, फिर गाली-गलौज और फिर मारा-मारी
और फिर इस खेल में उतरे वो
जो सेकना चाहते थे सियासी रोटियाँ
फिर चली गोलियाँ...लाठियाँ
और.....फिर वो शहर दंगे की चपेट में था

वो दो कुत्ते जिनके नाम न थे
रात जंगल में काट लौट आए हैं वहीं उसी सड़क पर
आज भी वो लड़े, भिड़ें
एक हड्डी के लिए, जो शायद किसी इंसान की थी....
अब वो दो कुत्ते सुस्ता रहे हैं
शहर क्यों खामोश है शायद यही सोच रहे हैं !

Monday 29 September, 2008

ब्लास्ट

वो गुजरता था रोज़ वहाँ से
उस दिन भी वो गुजरा वहाँ से
लेकिन उस दिन हुआ वहाँ ब्लास्ट
फिर वो गुज़र गया……………

बम को तो फटना था
बम का क्या कसूर था
बम को थोड़े ही पता था
कि उसका नाम गफ़ूर था

वो ना सिमी का सद्स्य था
ना उसने भेजा कभी धमकी भरा ईमेल
ना ही दंगो के सिलसिले में गया कभी वो जेल
ना कभी उसने पाकिस्तानी झंडा लहराया
ना कभी उसने किसी एनकाउंटर को फ़र्ज़ी ठहराया
ना वो जुनूनी था ना जेहादी
ना खाकी से सबंध था उसका
ना पहनी उसने कभी खादी
उस दिन उसकी मौत का
वक्त तय जरूर था
कोई तो बताए की गफ़ूर का क्या कसूर था?
ना हूज़ि से ना लश्कर से उसका वास्ता था
उसकी साइकल के टायर तक जानते थे
कि ये रोज का उसका रास्ता था
दो रोटी के लिए जद्दोजेहद ही उसका जेहाद था
बूढ़े माँ-बाप और दो बहनों के लिए
अकेला कमानेवाला हाथ था
उस दिन वो बहुत खुश था
उसकी बहिन का रिश्ता तय हुआ था
उसका दिल किया कि वो कुछ गुनगुनाए
पर जैसे ही उसने होंठ हिलाए
विस्फोट हो गया और वो अभागा वहीं सो गया............
नियति का प्रहार भी कितना क्रूर था
कोई तो बताए गफ़ूर का क्या कसूर था ?
चारों तरफ चीख पुकार
बिखरे शव और खून की छीटों के बीच
गफ़ूर को पहचान लिया गया
किसी एक ने उड़ाई हवा
और फिर उसे ‘मानव बम’ मान लिया गया
सभी चॅनेल लगे चिल्लाने
शहर में ब्लास्ट
एक बड़े आतंकवादी संगठन का काम था
ब्लास्ट को अंजाम दिया ‘मानव बम’ ने
गफ़ूर जिसका नाम था
हाँ, वो मुसलमान जरूर था
पर क्या यही उसका कसूर था ?
कोई तो बताए गफ़ूर का क्या कसूर था?

Friday 19 September, 2008

याद आती हैं इस सावन में उस सावन की बातें

याद आती हैं इस सावन में
उस सावन की बातें


याद आती हैं इस सावन में
उस सावन की बातें
वो ठहरी हुई गर्म साँसों में
लिपटी भीगी हुई रातें
वो अल्हड़ बारिश की बूंदों से
खेलती तुम
लिए होंठों पर मीठी सी दामिनी
बचपन में लौटती तुम
वो खिलखिलाती हंसी
और आसमान को छूती हुई बाहें
उंगलियों से लिपटता दुपट्टा
वो शरारती निगाहें
और सुनसान सड़कों पर
बेवजह टहलती मुलाकातें
याद आती हैं इस सावन में
उस सावन की बातें

वो बिखरे बालों में मोती सी दमकती
पानी की बूँदें
वो सुर्ख होंठों के चुंबन को तरसती
पानी की बूँदें
वो कभी खुशी से और कभी गम से
आँखों से बरसती
पानी की बूँदें
वो सरसराती हवाओं में
थरथराते होंठों से निकली
कुछ बहकी हुई सी बातें
याद आती हैं इस सावन में
उस सावन की बातें

वो अंजुलि भर पानी में तैरते सपनों में
खुद को खोजती तुम
कभी खामोशी की चादर में लिपटी
और कभी रिमझिम सी बोलती तुम
कभी बादलों में बनाती तस्वीरें
कभी झिलमिलाते तारो' से मांगती तुम
तुमने जो मांगा मिला वो तुमको
मुझको मिली ये तन्हाई
और आँसुओं सी गिरती बरसातें
याद आती हैं इस सावन में
उस सावन की बातें

Wednesday 17 September, 2008

baadh par ek kavita

बाढ़

तुमने नदी को बहते देखा
मैंने नदी को बहाते हुए देखा
लहरों की अठखेलियाँ लगती होंगी नृत्य तुम्हें
मैंने जल को तांडव करते देखा
पानी के विप्लव को देखा मैने
करते हुए अट्टहास मौत का
मैने देखा है लुटते अपनी दुनिया को
अपने बेबस आँचल से छूटते
अपने मुन्ने अपनी मुनिया को
सवाल है एक दुखियारी माँ का
क्या तुमने मेरे बच्चों को देखा?

तुमने देखा होगा मरते हुए सपनों को
मैने देखा है मरते हुए अपनों को
क्या इंसान, क्या पशु
ले जाता था जल प्रकोप जाने किस ओर
जल मग्न थे खेत-खलियान, घर, स्कूल सभी
नहीं दिखता था पानी का छोर
प्रकृति के आगे बेबस मानव को देखा
क्या तुमने मेरे बच्चों को देखा?

जहाँ सूखते थे कंठ प्यास से
और मट्के रहते थे अधिकतर उल्टे
उन गाँवों को भीं पानी में बहते देखा
फंसे हुए स्कूल की छतों पर
लोग मदद के लिए चिल्लाते थे
उम्मीद जहाँ थी रोटी की
कैमरे देख झल्लाते थे
भोजन के पॅकेट की आस में
दोड़ती थी नज़रें आसमान मे
नेताओं ने तो आसमान से ही बस तमाशा देखा
क्या तुमने मेरे बच्चों को देखा?

पानी को उतरते देखा
इंसानियत को मरते देखा
सोने के चंद गहनों के लिए
लाशों को भी लुटते देखा
राहत केंम्पों में भी
मददगारों को बनते हुए व्यापारी देखा
मुआवज़े की रकम् के लिए
अपने पति की लाश पर
दूसरी औरत को चूड़ियाँ तोड़ते देखा
क्या तुमने मेरे बच्चों को देखा?

उन्होने कहा कि वे जानते हैं कहाँ है मेरे बच्चे
फिर मैने विश्वास को टूटते हुए देखा
वहशियों को अपने शरीर को नोचते देखा
अपनी चीख को आसमान में फैलते देखा
लगा कि जैसे मैने भगवान को मरते हुए देखा
पर ये तो बताओ क्या तुमने ....
बच्चों की भगवान जाने
क्या तुमने मेरे कपड़ों को देखा?
क्या तुमने मेरे कपड़ों को देखा?

नोट: ये मात्र एक कल्पना है -ये एक अधूरा सत्य है , बाढ़ में मदद के लिए उठते हैं आज भी हज़ारों हाथ, उन नायको को में सलाम करता हूँ क्योकि दुनिया ऐसे ही लोगों के कारण सलामत है

Tuesday 15 July, 2008

मेरी माटी

ये वीरों की जननी, ये भारत भूमि मेरी
अपने लहू की भेंट चढ़ाकर इसका मान रखेंगे
आंच न आए इस धरती को
तन मन धन बलिदान करेंगे

इस बगिया की हर बात निराली
बच्चा बच्चा इसका माली
रंग रंग के फूल हैं इसके
खुश्बू से जिसकी जग है महके
सींच लहू से इसका सम्मान रखेंगे

नदियाँ, पहाड़ और झरने
हैं इस धरती के गहने
हवाओं में बहे संगीत जिसके
उस धारा के क्या हैं कहने
न्योछावर अपनी जान करेंगे

उत्तर में खड़ा विशाल हिमाला
गंगा, यमुना को गोदी में पाला
रक्षक हैं, प्रहरी हैं हम सबका
ताज है भारत के मस्तक का
सदा बनाये इसकी शान रखेंगे

इसी मिटटी में से उपजी
प्रेम, अहिंसा और शान्ति की फसलें
हुए पैदा संस्कार इसी धरा पर
खोली आँखें सभ्यता ने सबसे पहले
सीख संस्कृति की लेकर
सदा इसकी पहचान रखेंगे

कल कल करती नदियाँ जब हैं बहती
राम कथा की धुन हैं कहती
खेत खलियानों में मस्त पवन छेड़ती तानें
कहीं कीर्तन, कहीं शब्द और कहीं अजानें
शत शत नमन इस माटी को
सदा इसका गुणगान करेंगे
आंच न आए इस धरती को
तन मन धन बलिदान करेंगे

ये किसका हिंदुस्तान है

ये किसका हिन्दुतान है
ये किसका हिंदुस्तान है
मर गई हैं संवेदनाए, बिक रहा ईमान है
हिंदू हैं यहाँ, सिख हैं यहाँ, मुसलमा और इसाई भी
मिलता नहीं मगर इंसान है
ये किसका हिन्दुतान है
सत्य यहाँ पर झूठा है
एकलव्यों का कट ता यहाँ अंगूठा है
आगे बढता है वो ही जिसने अपनों को लूटा है
चिथडों में लिपटा ईमान यहाँ
नोटों की सेज पर सो रहा बेईमान है
ये किसका हिंदुस्तान है
ये किसका हिंदुस्तान है
अस्पतालों से गई धकेली
माँ बनती कमला फूटपाथ में
अजन्मी बेटियाँ भी यहाँ फेंकी जाती तालाब में
कहाँ गई मानवता जब
डाक्टर भी बना यहाँ हैवान है
ये किसका हिंदुस्तान है
ये किसका हिंदुस्तान है
गरीब हैं, जिन्दा हैं, बेबस और लाचार हैं
मर गए तो उनकी लाशों का भी व्यापार है
धर्म का लेबल लगा बेचते हैं ज़हर जो
खुली सिर्फ़ आज उनकी ही दुकान है
ये किसका हिंदुस्तान है
ये किसका हिंदुस्तान है
जिनके पसीने से खेत खलिहान लहलाते हैं
क्या कारण है की उनके ही चेहरे मुरझाते हैं
तालियाँ पीटते हैं दलाल यहाँ
छाती पीटते किसान हैं
ये किसका हिंदुस्तान है
ये किसका हिंदुस्तान है
सरहद पर मिटने वाले नहीं ये देख पाते हैं
ऐसे भी हैं यहाँ जो कफ़न तक बेच खाते हैं
कमीशन खाते नेता यहाँ
गोलियां खाते जवान हैं
ये किसका हिंदुस्तान है
ये किसका हिंदुस्तान है
अक्सर इस देश में ऐसा ही होता है
राधा का बेटा गणेश भूखा ही सोता है
आस्था के नाम पर लेकिन यहाँ
दूध से नाता भगवान् है
ये किसका हिंदुस्तान है
ये किसका हिंदुस्तान है
गाँधी की विरासत भी क्या खूब यहाँ बांटी है
छोड़ा अहिंसा का दामन, थमी सबने लाठी है
शब्द ही बन कर रह गए आदर्श
अब तो नोट ही गांधी की पहचान है
ये किसका हिंदुस्तान है
ये किसका हिंदुस्तान है
Posted by Indiantamasha