ब्लास्ट
वो गुजरता था रोज़ वहाँ से
उस दिन भी वो गुजरा वहाँ से
लेकिन उस दिन हुआ वहाँ ब्लास्ट
फिर वो गुज़र गया……………
बम को तो फटना था
बम का क्या कसूर था
बम को थोड़े ही पता था
कि उसका नाम गफ़ूर था
वो ना सिमी का सद्स्य था
ना उसने भेजा कभी धमकी भरा ईमेल
ना ही दंगो के सिलसिले में गया कभी वो जेल
ना कभी उसने पाकिस्तानी झंडा लहराया
ना कभी उसने किसी एनकाउंटर को फ़र्ज़ी ठहराया
ना वो जुनूनी था ना जेहादी
ना खाकी से सबंध था उसका
ना पहनी उसने कभी खादी
उस दिन उसकी मौत का
वक्त तय जरूर था
कोई तो बताए की गफ़ूर का क्या कसूर था?
ना हूज़ि से ना लश्कर से उसका वास्ता था
उसकी साइकल के टायर तक जानते थे
कि ये रोज का उसका रास्ता था
दो रोटी के लिए जद्दोजेहद ही उसका जेहाद था
बूढ़े माँ-बाप और दो बहनों के लिए
अकेला कमानेवाला हाथ था
उस दिन वो बहुत खुश था
उसकी बहिन का रिश्ता तय हुआ था
उसका दिल किया कि वो कुछ गुनगुनाए
पर जैसे ही उसने होंठ हिलाए
विस्फोट हो गया और वो अभागा वहीं सो गया............
नियति का प्रहार भी कितना क्रूर था
कोई तो बताए गफ़ूर का क्या कसूर था ?
चारों तरफ चीख पुकार
बिखरे शव और खून की छीटों के बीच
गफ़ूर को पहचान लिया गया
किसी एक ने उड़ाई हवा
और फिर उसे ‘मानव बम’ मान लिया गया
सभी चॅनेल लगे चिल्लाने
शहर में ब्लास्ट
एक बड़े आतंकवादी संगठन का काम था
ब्लास्ट को अंजाम दिया ‘मानव बम’ ने
गफ़ूर जिसका नाम था
हाँ, वो मुसलमान जरूर था
पर क्या यही उसका कसूर था ?
कोई तो बताए गफ़ूर का क्या कसूर था?
Monday 29 September, 2008
Friday 19 September, 2008
याद आती हैं इस सावन में उस सावन की बातें
याद आती हैं इस सावन में
उस सावन की बातें
याद आती हैं इस सावन में
उस सावन की बातें
वो ठहरी हुई गर्म साँसों में
लिपटी भीगी हुई रातें
वो अल्हड़ बारिश की बूंदों से
खेलती तुम
लिए होंठों पर मीठी सी दामिनी
बचपन में लौटती तुम
वो खिलखिलाती हंसी
और आसमान को छूती हुई बाहें
उंगलियों से लिपटता दुपट्टा
वो शरारती निगाहें
और सुनसान सड़कों पर
बेवजह टहलती मुलाकातें
याद आती हैं इस सावन में
उस सावन की बातें
वो बिखरे बालों में मोती सी दमकती
पानी की बूँदें
वो सुर्ख होंठों के चुंबन को तरसती
पानी की बूँदें
वो कभी खुशी से और कभी गम से
आँखों से बरसती
पानी की बूँदें
वो सरसराती हवाओं में
थरथराते होंठों से निकली
कुछ बहकी हुई सी बातें
याद आती हैं इस सावन में
उस सावन की बातें
वो अंजुलि भर पानी में तैरते सपनों में
खुद को खोजती तुम
कभी खामोशी की चादर में लिपटी
और कभी रिमझिम सी बोलती तुम
कभी बादलों में बनाती तस्वीरें
कभी झिलमिलाते तारो' से मांगती तुम
तुमने जो मांगा मिला वो तुमको
मुझको मिली ये तन्हाई
और आँसुओं सी गिरती बरसातें
याद आती हैं इस सावन में
उस सावन की बातें
उस सावन की बातें
याद आती हैं इस सावन में
उस सावन की बातें
वो ठहरी हुई गर्म साँसों में
लिपटी भीगी हुई रातें
वो अल्हड़ बारिश की बूंदों से
खेलती तुम
लिए होंठों पर मीठी सी दामिनी
बचपन में लौटती तुम
वो खिलखिलाती हंसी
और आसमान को छूती हुई बाहें
उंगलियों से लिपटता दुपट्टा
वो शरारती निगाहें
और सुनसान सड़कों पर
बेवजह टहलती मुलाकातें
याद आती हैं इस सावन में
उस सावन की बातें
वो बिखरे बालों में मोती सी दमकती
पानी की बूँदें
वो सुर्ख होंठों के चुंबन को तरसती
पानी की बूँदें
वो कभी खुशी से और कभी गम से
आँखों से बरसती
पानी की बूँदें
वो सरसराती हवाओं में
थरथराते होंठों से निकली
कुछ बहकी हुई सी बातें
याद आती हैं इस सावन में
उस सावन की बातें
वो अंजुलि भर पानी में तैरते सपनों में
खुद को खोजती तुम
कभी खामोशी की चादर में लिपटी
और कभी रिमझिम सी बोलती तुम
कभी बादलों में बनाती तस्वीरें
कभी झिलमिलाते तारो' से मांगती तुम
तुमने जो मांगा मिला वो तुमको
मुझको मिली ये तन्हाई
और आँसुओं सी गिरती बरसातें
याद आती हैं इस सावन में
उस सावन की बातें
Wednesday 17 September, 2008
baadh par ek kavita
बाढ़
तुमने नदी को बहते देखा
मैंने नदी को बहाते हुए देखा
लहरों की अठखेलियाँ लगती होंगी नृत्य तुम्हें
मैंने जल को तांडव करते देखा
पानी के विप्लव को देखा मैने
करते हुए अट्टहास मौत का
मैने देखा है लुटते अपनी दुनिया को
अपने बेबस आँचल से छूटते
अपने मुन्ने अपनी मुनिया को
सवाल है एक दुखियारी माँ का
क्या तुमने मेरे बच्चों को देखा?
तुमने देखा होगा मरते हुए सपनों को
मैने देखा है मरते हुए अपनों को
क्या इंसान, क्या पशु
ले जाता था जल प्रकोप जाने किस ओर
जल मग्न थे खेत-खलियान, घर, स्कूल सभी
नहीं दिखता था पानी का छोर
प्रकृति के आगे बेबस मानव को देखा
क्या तुमने मेरे बच्चों को देखा?
जहाँ सूखते थे कंठ प्यास से
और मट्के रहते थे अधिकतर उल्टे
उन गाँवों को भीं पानी में बहते देखा
फंसे हुए स्कूल की छतों पर
लोग मदद के लिए चिल्लाते थे
उम्मीद जहाँ थी रोटी की
कैमरे देख झल्लाते थे
भोजन के पॅकेट की आस में
दोड़ती थी नज़रें आसमान मे
नेताओं ने तो आसमान से ही बस तमाशा देखा
क्या तुमने मेरे बच्चों को देखा?
पानी को उतरते देखा
इंसानियत को मरते देखा
सोने के चंद गहनों के लिए
लाशों को भी लुटते देखा
राहत केंम्पों में भी
मददगारों को बनते हुए व्यापारी देखा
मुआवज़े की रकम् के लिए
अपने पति की लाश पर
दूसरी औरत को चूड़ियाँ तोड़ते देखा
क्या तुमने मेरे बच्चों को देखा?
उन्होने कहा कि वे जानते हैं कहाँ है मेरे बच्चे
फिर मैने विश्वास को टूटते हुए देखा
वहशियों को अपने शरीर को नोचते देखा
अपनी चीख को आसमान में फैलते देखा
लगा कि जैसे मैने भगवान को मरते हुए देखा
पर ये तो बताओ क्या तुमने ....
बच्चों की भगवान जाने
क्या तुमने मेरे कपड़ों को देखा?
क्या तुमने मेरे कपड़ों को देखा?
नोट: ये मात्र एक कल्पना है -ये एक अधूरा सत्य है , बाढ़ में मदद के लिए उठते हैं आज भी हज़ारों हाथ, उन नायको को में सलाम करता हूँ क्योकि दुनिया ऐसे ही लोगों के कारण सलामत है
तुमने नदी को बहते देखा
मैंने नदी को बहाते हुए देखा
लहरों की अठखेलियाँ लगती होंगी नृत्य तुम्हें
मैंने जल को तांडव करते देखा
पानी के विप्लव को देखा मैने
करते हुए अट्टहास मौत का
मैने देखा है लुटते अपनी दुनिया को
अपने बेबस आँचल से छूटते
अपने मुन्ने अपनी मुनिया को
सवाल है एक दुखियारी माँ का
क्या तुमने मेरे बच्चों को देखा?
तुमने देखा होगा मरते हुए सपनों को
मैने देखा है मरते हुए अपनों को
क्या इंसान, क्या पशु
ले जाता था जल प्रकोप जाने किस ओर
जल मग्न थे खेत-खलियान, घर, स्कूल सभी
नहीं दिखता था पानी का छोर
प्रकृति के आगे बेबस मानव को देखा
क्या तुमने मेरे बच्चों को देखा?
जहाँ सूखते थे कंठ प्यास से
और मट्के रहते थे अधिकतर उल्टे
उन गाँवों को भीं पानी में बहते देखा
फंसे हुए स्कूल की छतों पर
लोग मदद के लिए चिल्लाते थे
उम्मीद जहाँ थी रोटी की
कैमरे देख झल्लाते थे
भोजन के पॅकेट की आस में
दोड़ती थी नज़रें आसमान मे
नेताओं ने तो आसमान से ही बस तमाशा देखा
क्या तुमने मेरे बच्चों को देखा?
पानी को उतरते देखा
इंसानियत को मरते देखा
सोने के चंद गहनों के लिए
लाशों को भी लुटते देखा
राहत केंम्पों में भी
मददगारों को बनते हुए व्यापारी देखा
मुआवज़े की रकम् के लिए
अपने पति की लाश पर
दूसरी औरत को चूड़ियाँ तोड़ते देखा
क्या तुमने मेरे बच्चों को देखा?
उन्होने कहा कि वे जानते हैं कहाँ है मेरे बच्चे
फिर मैने विश्वास को टूटते हुए देखा
वहशियों को अपने शरीर को नोचते देखा
अपनी चीख को आसमान में फैलते देखा
लगा कि जैसे मैने भगवान को मरते हुए देखा
पर ये तो बताओ क्या तुमने ....
बच्चों की भगवान जाने
क्या तुमने मेरे कपड़ों को देखा?
क्या तुमने मेरे कपड़ों को देखा?
नोट: ये मात्र एक कल्पना है -ये एक अधूरा सत्य है , बाढ़ में मदद के लिए उठते हैं आज भी हज़ारों हाथ, उन नायको को में सलाम करता हूँ क्योकि दुनिया ऐसे ही लोगों के कारण सलामत है
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