Tum kahan khade ho?
तुमने कहा कि सब चोर हैं, लुटेरे
हैंहर शाख़ पर बैठे हैं ले कर तीर कमान
निरीह जनता के शिकारी बहुतेरे हैं
भ्रष्ट हैं नेता, भ्रष्ट अधिकारी, भ्रष्ट है पूरा तंत्र
आत्मा तक रखी गिरवी इन्होंने
कहने को ही है देश ये स्वतंत्र
पर मेरे दोस्त ये तो
बताओ कि तुम कहाँ खड़े हों?
दबी-दबी आवाज़ में कहते
हो भय और आतंक के माहौल में जीते हो
घर से निकलते हो डरते हुए
घर में घुसते हो सहमे हुए
साहस का शस्त्र पड़ा-
पड़ा सड़ता तुम्हारे
भीतर प्रशासन की कायरता पर चिल्लाते हो
पर मेरे दोस्त ये तो बताओ
कि तुम कहाँ लड़े हो?
रोते रहे तुम किस्मत का रोना
पेड़ सफलता का
उगता पर भूले तुम मेहनत का पौंधा बोना
वो लड़े, वो बढ़े और जीते
तुम हर हार पर हारे हिम्मत
वो हर हार से
सीखे देख देख कर बाधाएं तुम
घबराते पग काँटों पर रखते
तुम भी तो फूलों की सेज पाते
पर मेरे दोस्त ये तो बताओ कि
तुम कहाँ बढ़े हो?
तुमने लिखे चाँद पर
गीत और उन्हे
गुनगुनाया पर चाँद को पाने के
लिए कब तुमने हाथ उठाया?
मिट्टी में हाथ अगर तुम सनाते
तो सपने तुम्हारे भी हकीकत बन
पर तुम सपनों को समझते रहे खिलोने
जब टूटे तो लगे तुम रोने
सूरज ने तुम्हे है फिर जगाया
एक नई सुबह है लाया
पर मेरे दोस्त ये तो बताओ
कि तुम कहाँ पड़े हो?
kash hum tum n kabhi mile hote
काश हम तुम न कभी मिले होते
दरमयां हमारे आज ये फ़ासले न
होते न भूले होते हम मुस्कुराना
नींद से अपना भी होता याराना
देख देख कर चाँद को हम यूं न रोते
आँखों में हमारे हरदम नमी
हिस्से का भी थोड़ा आसमां थोड़ी जमीं होती
दर्द के अंतहीन ये सिलसिले न
होते न ज़ख़्मों के निशां उभरते रह-रह के
न थकते आँसू हमारे बह-बहके
खामोशी से लब यूं सिले न होते
न तेरे तस्सवुर की गलियों में हम
भटकते न लड़खड़ाते कदम, न हम यूं
बहकते न याद करते कभी,
न तुझको कभी भूले होते
Thursday, 30 October 2008
Monday, 6 October 2008
वो दो कुत्ते
वो दो कुत्ते
वो दो कुत्ते जिनके नाम न थे
कर्फ्यू से अनजान टहलते हैं उस सड़क पर
जो गवाह बनी थी कलमजहबी जुनून की
सड़क पर बिखरे हैं उस कल के निशान आज भी
अधजले टायर, टूटी हुई बोतलें और इंसानी लहू के धब्बे
जो बयां कर रहे हैं कहानी उस कल की
जो इस शहर की चीखती छाती परदर्ज हो गया सदा के लिए
वो दो कुत्ते जिनके नाम न थे
घूमते हैं बिंदास अधजली दुकानों के अंदर
जो कुछ मिलता है झपटते हैं, संघर्ष करते हैं आपस में
और फिर थक कर सो जाते हैं वहीं सड़क के किनारे
होती है हरकत उनके सुस्ताते शरीर में
जब पुलिस की गाड़ी का सायरन गूंजता है
वो भोंकते हैं, पीछा करते हैं
अपना श्वान धर्म निभाकर वापस लौट आते हैं
वहींउसी सड़क के किनारे
वो दो कुत्ते जिनके नाम न थे
कुछ हैरान भी थे
ना बच्चों का शोर ना गाड़ियों की पों पों
ना फेरीवालों की आवाज़ें
शहर जैसे गुम हो गया था
एक खामोश मातम का गवाह
सुनता है तो सिर्फ पुलिस की गाड़ियों के सायरन
और लाउडस्पीकर से निकलती हिदायतें
घर के अंदर रहो शहर में कर्फ्यू लगा है
वो दो कुत्ते जिनके नाम न थे
कल भी लड़ते थे , पर कल कुछ यूँ हुआ कि
दो लड़कों ने उनके नाम रख दिए
वो दो कुत्ते अचानक बन गये
अलग-अलग मज़हबों के प्रतिनिधि
वो अनजान थे
वो दो कुत्ते नहीं जानते थे की उन पर लग गया है दाव
वो लड़ते जाते थे
तमाशबीन बढ़ते जाते थे
ना वो जीते ना हारे भीड़ देख कर भाग खड़े हुए
पर दाव तो दाव था
पहले बहस, फिर गाली-गलौज और फिर मारा-मारी
और फिर इस खेल में उतरे वो
जो सेकना चाहते थे सियासी रोटियाँ
फिर चली गोलियाँ...लाठियाँ
और.....फिर वो शहर दंगे की चपेट में था
वो दो कुत्ते जिनके नाम न थे
रात जंगल में काट लौट आए हैं वहीं उसी सड़क पर
आज भी वो लड़े, भिड़ें
एक हड्डी के लिए, जो शायद किसी इंसान की थी....
अब वो दो कुत्ते सुस्ता रहे हैं
शहर क्यों खामोश है शायद यही सोच रहे हैं !
वो दो कुत्ते जिनके नाम न थे
कर्फ्यू से अनजान टहलते हैं उस सड़क पर
जो गवाह बनी थी कलमजहबी जुनून की
सड़क पर बिखरे हैं उस कल के निशान आज भी
अधजले टायर, टूटी हुई बोतलें और इंसानी लहू के धब्बे
जो बयां कर रहे हैं कहानी उस कल की
जो इस शहर की चीखती छाती परदर्ज हो गया सदा के लिए
वो दो कुत्ते जिनके नाम न थे
घूमते हैं बिंदास अधजली दुकानों के अंदर
जो कुछ मिलता है झपटते हैं, संघर्ष करते हैं आपस में
और फिर थक कर सो जाते हैं वहीं सड़क के किनारे
होती है हरकत उनके सुस्ताते शरीर में
जब पुलिस की गाड़ी का सायरन गूंजता है
वो भोंकते हैं, पीछा करते हैं
अपना श्वान धर्म निभाकर वापस लौट आते हैं
वहींउसी सड़क के किनारे
वो दो कुत्ते जिनके नाम न थे
कुछ हैरान भी थे
ना बच्चों का शोर ना गाड़ियों की पों पों
ना फेरीवालों की आवाज़ें
शहर जैसे गुम हो गया था
एक खामोश मातम का गवाह
सुनता है तो सिर्फ पुलिस की गाड़ियों के सायरन
और लाउडस्पीकर से निकलती हिदायतें
घर के अंदर रहो शहर में कर्फ्यू लगा है
वो दो कुत्ते जिनके नाम न थे
कल भी लड़ते थे , पर कल कुछ यूँ हुआ कि
दो लड़कों ने उनके नाम रख दिए
वो दो कुत्ते अचानक बन गये
अलग-अलग मज़हबों के प्रतिनिधि
वो अनजान थे
वो दो कुत्ते नहीं जानते थे की उन पर लग गया है दाव
वो लड़ते जाते थे
तमाशबीन बढ़ते जाते थे
ना वो जीते ना हारे भीड़ देख कर भाग खड़े हुए
पर दाव तो दाव था
पहले बहस, फिर गाली-गलौज और फिर मारा-मारी
और फिर इस खेल में उतरे वो
जो सेकना चाहते थे सियासी रोटियाँ
फिर चली गोलियाँ...लाठियाँ
और.....फिर वो शहर दंगे की चपेट में था
वो दो कुत्ते जिनके नाम न थे
रात जंगल में काट लौट आए हैं वहीं उसी सड़क पर
आज भी वो लड़े, भिड़ें
एक हड्डी के लिए, जो शायद किसी इंसान की थी....
अब वो दो कुत्ते सुस्ता रहे हैं
शहर क्यों खामोश है शायद यही सोच रहे हैं !
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